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Saturday, February 10, 2018

पहन लो जैकेट अगर बिजली नहीं तो क्या हुआ

MP में शिक्षकों के लिए विशेष ड्रेस कोड की जैकेट 
भोपाल: 10 फरवरी 2018: (मध्य प्रदेश स्क्रीन ब्यूरो//इंट.)::
"डिजिटल इंडिया" और "विकास" के इस युग में प्राथमिकताएं बदल रही हैं। कभी जनाब दुष्यंत कुमार साहिब ने कहा था:
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ; 
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ। 
अब जबकि प्रदेश में बहुत सी बातें विकास करने वालों का ध्यान मांग रही हैं उस समय कुछ नए ऐलान सामने आ रहे हैं। 
एक ऐलान सुनने में आया है कि मध्य प्रदेश के शिक्षकों को अब नया ड्रेस कोड मिलने वाला है। शिक्षकों को "नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी"(निफ्ट) की तरफ से डिजाइन की गई जैकेट दी जाएंगी।  उनकी शख्सियत में निखार आएगा और वे सचमुच राष्ट्र निर्माता दिखने लगेंगे। आम जनता के मुद्दों से जुड़ कर काम कर रहे एक जानेमाने टीवी चैनल एनडीटीवी की खबर के मुताबिक मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री विजय शाह ने कहा कि यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि शिक्षकों को महसूस हो कि वे एक महान कार्य कर रहे हैं और उनकी पहचान सरकारी शिक्षक के तौर पर हो सके। इस फैसले मुताबिक राज्य में करीब ढाई लाख सरकारी शिक्षकों को जल्द ही ये जैकेट मुहैया कराई जाएंगी। राज्य के शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि सभी शिक्षकों को निफ्ट की तरफ से डिजाइन की गई जैकेट पहननी होंगी, जैकेट पर राष्ट्र निर्माता नाम की नेमप्लेट भी लगी होगी। 
गौररतलब है कि यह सरकारी आदेश ऐसे समय आया है जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने पिछले वर्ष यह स्वीकार किया था कि राज्य में एक लाख से ज्यादा स्कूलों में बिजली नहीं है, 17 हजार से ज्यादा स्कूल में केवल एक-एक शिक्षक पर निर्भर हैं और करीब 50 हजार से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं।
इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने इसकी आलोचना की है और कहा है की वास्तविक मुद्दों पर दशा देने की बजाये ड्रेस कोड जैसे मुद्दे प्राथमिक बना कर एक ख़ास विचारधारा को लागू करने का छुपा एजेंडा है यह योजना। गौरतलब है कि यह प्रयास काफी देर से जारी है।  डाक बाबुओं के लिए भी विशेष ड्रेस बनाने की बात चली थी। 
अब लगे हाथ दुष्यंत कुमार साहिब की ग़ज़ल के कुछ और शेयर भी पढ़ लीजिये। 
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ 
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह 
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ । 
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही 
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ । 
क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ 
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ । 
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को 
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला । 
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो 
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । 
दोस्त, अपने मुल्क की किस्मत पे रंजीदा न हो 
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ । 
इस शहर मे हो कोई बारात हो या वारदात 
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।