सोचने को मजबूर करती सच्ची कहानी
आप सुन सकते हैं उनकी नई पॉडकास्ट यहाँ क्लिक करके |
लुधियाना: 3 फरवरी 2022: (मध्यप्रदेश स्क्रीन ब्यूरो)::
मुझे नहीं मालूम देवलोक है या नहीं। देवी देवता होते हैं या नहीं। लेकिन इतना ज़रूर है कि कुछ विशेष लोग इसी इंसानी रूप में ऐसे होते हैं जिनमें दूसरों के दर्द को महसूस करने की संवेदना होती है। जिनमें दूसरों के दुःख को दूर करने की इच्छा होती है। जिनके पास जो कुछ होता है उसे बांट कर ही उन्हें ख़ुशी मिलती है। कुमुद सिंह उन्हीं दिव्य लोगों जैसी ही हैं।
सादगी भरा सीधा सा व्यक्तित्व। बिलकुल ही सीधे से शब्द। टू द पॉइंट बात। सीधा सा नज़रिया। सरोकार आम जनता से जुड़े हुए। यही है कुमुद सिंह की जान पहचान। सड़क पर राह जाते गाड़ी रोक लेना। सिर्फ रोक ही नहीं लेना ज़रूरत पड़े तो बैक भी करना। अगर बैक करना सम्भव न हो तो अगले कट से ही वापिस उधर आ पहुंचना जहां फुटपाथ पर परेशान से बैठे किसी व्यक्ति को देखा था। बस दिमाग में इतना सा ही कौंध जाना कि यह तो कोई बरसों पुराने जानकार का चेहरा लगता है। पास आ कर पूछना आप कहीं वो तो नहीं जो हमारे पड़ोस में रहते थे। कन्फर्म भी करना उसका हालचाल भी पूछना और गाड़ी में पड़ी राश की किट के साथ उसे कुछ पैसे भी थमा देना। कोरोना के दिनों में कुमुद परिवार की टीम ने ऐसा बहुत बार किया। यह मोहब्बत है इंसानियत से। इबादत है इंसानियत की। मोहब्बत इसी तरह इबादत बनती है। आप सुन सकते हैं उनकी नई पॉडकास्ट यहाँ क्लिक करके। बहुत ही टचिंग है यह कहानी नूर और सिमरन की। कुमुद कहती हैं-जि़न्दगी का पहला और अंतिम सत्य तो मोहब्बत ही है ना और मोहब्बत का दूसरा नाम हैं "नूर और सिमरन" (जिसे नूर प्यार से सिमर कहती) आज सुनिये कहानी नूर और सिमरन की। कुमुद जी की आवाज़ सचमुच आकाशवाणी की ही आवाज़ लगती है। अपनी कलम, अपनी आवाज़ अपने शब्दों और अंदाज़ का इस्तेमाल अमन और मोहब्बत के लिए करना एक बहुत मिसाल हम सभी के लिए। आप भी सरोकार से जुड़ सकते हैं। पहले अआप इसे सुन कर देखिए। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। --रेक्टर कथूरिया
No comments:
Post a Comment