Sunday, February 27, 2022

जब खजुराहो के नृत्यों में साकार हुए बसंत और फागुन

26 February 2022 at 21:41 IST

खजुराहो नृत्य समारोह का समापन हृदयग्राही और ओजपूर्ण रहा 


भोपाल
: शनिवार, 26 फरवरी 2022, 21:41 IST: (मध्यप्रदेश स्क्रीन ब्यूरो)::


फागुन महीने का जादू क़ज़ा होता है इसकी अनुभूति के बिना इसे समझा नहीं जा सकता। जानेमाने फ़िल्मकार जनाब राजिंदर सिंह बेदी ने वर्ष 1973 में रिलीज़ हुई फिल्म फागुन को लिखा भी था और निर्देशित भी किया था। फागुन से जुड़े माहौल और जज़्बातों को दर्शाती इस फिल्म में हरति रंग भी था और पंजाब का रंग भी। अमीरी का रंग भी और गरीबी का रंग भी। सुनने वालों को मस्त कर देने वाले गीतों को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी साहिब ने और संगीत से सजाया था सचिनदेव बर्मन साहिब ने। इसमें एक गीत है फागुन आयो रे.....! इस गीत के शब्द, आवाज़ और संगीत एक दृश्य का निर्माण कर देते हैं कि होली का उल्लास साकार हो उठता है। 

जब वसंत के महीने में खजुराहो जैसा स्थान भी हो तो एक नया ही रंग बनता है। पर्यटन नगरी में आज की शाम बसंत और फागुन अपने शबाब पर थे। इस बार 48वें खजुराहो नृत्य समारोह के आखिरी दिन सुर, लय, ताल, नृत्य, संगीत और रंगों का ऐसा संगम हुआ कि बसंत कब फागुन में बदल गया इसका आभास ही नहीं हुआ। सुखद अहसासों से लबरेज इस रंगीन शाम में भोपाल की श्वेता और क्षमा की जोड़ी से लेकर कथक की जानी मानी हस्ती शमा भाटे ने ऐसे अद्भुत रंग भरे जिसका बखान करना मुश्किल है। आखिरी प्रस्तुति के रूप में सुदूर उत्तर पूर्व भारत के मणिपुरी नर्तकों ने तो कमाल ही कर दिया। इन्हीं प्रस्तुतियों के साथ 48वें खजुराहो नृत्य समारोह का हृदयग्राही समापन हो गया। 

नृत्य समारोह के आखिरी दिन की पहली प्रस्तुति के रूप में कथक और भरतनाट्यम की जुगलबन्दी पेश की गई। भोपाल की भरतनाटयम नृत्यांगना श्वेता देवेंद्र और कथक नृत्यांगना क्षमा मालवीय  ने अपने ग्रुप्स की 14 नृत्यांगनाओं के साथ अद्भुत नृत्य प्रस्तुति दी। दोनों ने नर्मदा जी की स्तुति से शुरुआत की। रागमालिका के तमाम राग़ों को पिरोकर तैयार की गई इस स्तुति के बोल थे-"नमो नर्मदाय निजानंदाय.."। आदि और तीनताल में निबद्ध इस रचना में नर्मदा जी के 10 नामों को भाव नृत से प्रस्तुत किया गया। भाव नृत्य की प्रस्तुति में दोनों नृतिकियों का अद्भुत संगम देखने को मिला।  सूरदास के पद "सुंदर श्याम सुंदसर लीला सुंदर बोलत बचन " कथक और भरतनाटयम का सुंदर रूप उभरकर सामने आया। इसी के साथ कथक और भरतनाटयम को एकाकार करते हुए इस प्रस्तुति का समापन हुआ। 

दूसरी प्रस्तुति देश की जानी मानी नृत्यांगना शमा भाटे के कथक नृत्य की थी। उनके नृत्य संस्थान - "नादरूप " के कलाकारों ने बसंत और फागुन को अपने कथक से खजुराहो के मंच पर साकार किया। "उमंग"  नाम की इस प्रस्तुति में बसंत भी था। होली के रंग भी बिखरे और कृष्ण की बंशी के जादू ने तो मादकता के पैमाने तोड़ दिए। दरअसल शमा जी की इस नृत्य रचना में प्रकृति की खूबसूरती के दर्शन होते हैं। तिलंग के स्वरों में कृष्ण की वंदना- "-वसुदेव सुतम ..." पर कलाकारों ने बेहतरीन नृतभाव दिखाए। फिर रथ पर सवार बसन्त का आगमन मन को लुभा गया। "कलियन संग करत रंगरलियां" बसंत और बहार के सुरों और त्रिताल में बंधी इस रचना पर भाव नृत से कलाकारों ने जैसे बसंत को साकार कर दिया। फिर आगे बढ़े तो पहाड़ी के सुरों में होली-  " रंग डारूँगी डारूँगी रंग डारूँगी नंद के लालन पे " की प्रस्तुति सभी को रंग बिरंगा कर गई। पटदीप के सुरों में सजी बंदिश - बाजे मुरलिया बाजे- पर बाँसुरी और भीमसेन जोशी दोनों ही साकार हो गए। बंदिश पंडित भीमसेन की आवाज में थी आखिर में तीन ताल में भैरवी की बंदिश-" आज राधा बृज को चली," पर भाव नृत करते हुए तराने के बोलों के साथ खुद को समाहित करते हुए नृत्य का समापन हुआ। दर्शकों को लगा कि सब परिपूर्ण है सब सबरंग है। 

नृत्य समारोह का ओजपूर्ण और जोशीला समापन इम्फाल से आये मणिपुरी नृत्य समूह 'तपस्या' के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत मणिपुरी नृत्य से हुआ। नृत्य का आगाज़ नट संकीर्तन से हुआ। यह पूजा का एक रूप है, जो महायज्ञ के रूप में माना जाता है। यह श्रीमद भागवत के सौंदर्य तत्व को प्रदर्शित करता है। मणिपुरी शैली में नर्तकों ने पुंग और करताल के साथ मंद अभिनय और नृत्य संगीत के साथ इसे पेश किया। यूनेस्को ने मणिपुरी नृत्य संकीर्तन को अपनी प्रतिनिधि सूची में जगह दी है। अगली प्रस्तुति "एको गोपी एको श्याम" की रही। इस प्रस्तुति में कृष्ण के प्रति गोपियों के प्यार को बड़े ही उदात्त और मार्मिक ढंग से पेश किया गया।  अहंकार होने पर कृष्ण गोपियों को छोड़कर चले जाते हैं और अहंकार टूटने पर आ जाते हैं। हर गोपी के साथ उनकी उपस्थिति से इसे एको गोपी एको श्याम की संज्ञा दी गई। इन प्रस्तुतियों में 20 कलाकारो ने भागीदारी की। सभी पर्यटको और दर्शकों ने लगातार करतल ध्वनि से खजुराहो नृत्य समारोह के कलाकारों और आयोजकों का अभिवादन कर उनकी प्रस्तुतियों को पूर्णता प्रदान की।

कुल मिला कर यह एक यादगारी आयोजन रहा। जो देख सके वे भाग्यशाली रहे। जो इस बार नहीं देख सके उन्हें इंतज़ार करना होगा अगली बार का। 

Thursday, February 3, 2022

कहानी नूर और सिमरन की//कुमुद सिंह की ज़ुबानी

 सोचने को मजबूर करती सच्ची कहानी 

आप सुन सकते हैं उनकी नई पॉडकास्ट यहाँ क्लिक करके

लुधियाना: 3 फरवरी 2022: (मध्यप्रदेश स्क्रीन ब्यूरो)::

मुझे नहीं मालूम देवलोक है या नहीं। देवी देवता होते हैं या नहीं। लेकिन इतना ज़रूर है कि कुछ विशेष लोग इसी इंसानी रूप में ऐसे होते हैं जिनमें दूसरों के दर्द को महसूस करने की संवेदना होती है। जिनमें दूसरों के दुःख को दूर करने की इच्छा होती है। जिनके पास जो कुछ होता है उसे बांट कर ही उन्हें ख़ुशी मिलती है। कुमुद सिंह उन्हीं दिव्य लोगों जैसी ही हैं।  
सादगी भरा सीधा सा व्यक्तित्व। बिलकुल ही सीधे से शब्द। टू द पॉइंट बात। सीधा सा नज़रिया। सरोकार आम जनता से जुड़े हुए। यही है कुमुद सिंह की जान पहचान। सड़क पर राह जाते गाड़ी रोक लेना। सिर्फ रोक ही नहीं लेना ज़रूरत पड़े तो बैक भी करना। अगर बैक करना सम्भव न हो तो अगले कट से ही वापिस उधर आ पहुंचना जहां फुटपाथ पर परेशान से बैठे किसी व्यक्ति को देखा था। बस दिमाग में इतना सा ही कौंध जाना कि यह तो कोई बरसों पुराने जानकार का चेहरा लगता है। पास आ कर पूछना आप कहीं वो तो नहीं जो हमारे पड़ोस में रहते थे। कन्फर्म भी करना उसका हालचाल भी पूछना और गाड़ी में पड़ी राश की किट के साथ उसे कुछ पैसे भी थमा देना। कोरोना के दिनों में कुमुद परिवार की टीम ने ऐसा बहुत बार किया। यह मोहब्बत है इंसानियत से। इबादत है इंसानियत की। मोहब्बत इसी तरह इबादत बनती है। आप सुन सकते हैं उनकी नई पॉडकास्ट यहाँ क्लिक करके। बहुत ही टचिंग है यह कहानी नूर और सिमरन की। कुमुद कहती हैं-जि़न्दगी का पहला और अंतिम सत्य तो मोहब्बत ही है ना और मोहब्बत का दूसरा नाम हैं "नूर और सिमरन" (जिसे नूर प्यार से सिमर कहती) आज  सुनिये कहानी नूर और सिमरन की।  कुमुद जी की आवाज़ सचमुच आकाशवाणी की ही आवाज़ लगती है। अपनी कलम, अपनी आवाज़ अपने शब्दों और अंदाज़ का इस्तेमाल अमन और मोहब्बत के लिए करना एक बहुत मिसाल हम सभी के लिए। आप भी सरोकार से जुड़ सकते हैं। पहले अआप इसे सुन कर देखिए। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। --रेक्टर कथूरिया