Saturday, September 25, 2021

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने किया शिलान्यास और लोकार्पण

Saturday, 25th September 2021 at 21:15 IST

 745 निर्माण कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया कोठी में  


भोपाल
: शनिवार, 25 सितम्बर 2021: (मध्यप्रदेश स्क्रीन ब्यूरो)::

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने रैगांव से कोठी तक जनदर्शन यात्रा में आमजनों से संवाद किया। कोठी में जनदर्शन समारोह में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने 24 करोड़ 75 लाख रूपये लागत के 745 निर्माण कार्यों का भूमि-पूजन तथा लोकार्पण किया।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कोठी में 15 करोड़ 6 लाख 34 हजार रूपये के 389 निर्माण कार्यों का शिलान्यास किया। इसमें पीएचई विभाग के 4, नगर पंचायत कोठी के 4, गौशाला निर्माण का एक और नवीन पंचायत भवन के 6 निर्माण कार्य शामिल हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने रैगांव विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न गांवों में सीसी रोड, पुलिया, चेकडैम तथा अन्य निर्माण कार्यों सहित 5 करोड़ 43 लाख 28 हजार रूपये के 123 निर्माण कार्यों का शिलान्यास किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बाउण्ड्रीवाल तथा पेवर ब्लॉक लगाने के 16 कार्यों, जल संवर्धन के 161 कार्यों, स्वच्छता से जुड़े 61 निर्माण कार्यों और 13 भवनों के निर्माण कार्य का भी शिलान्यास किया।

जनदर्शन में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने 9 करोड़ 68 लाख 60 हजार रूपये की लागत के 356 निर्माण कार्यो का लोकार्पण किया। इन निर्माण कार्यों में दो गौशाला, एक पंचायत भवन, 49 बाउण्ड्रीवाल तथा पेवर ब्लॉक निर्माण और 16 स्वच्छता संबंधी निर्माण कार्य शामिल हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने विभिन्न ग्राम पंचायतों में जल संवर्धन के 153 निर्माण कार्यों, सीसी रोड तथा पुलिया निर्माण के 114 कार्यों और ग्राम पंचायत स्तर पर बनाये गये 21 नवीन भवनों का लोकार्पण किया। समारोह में वन मंत्री तथा जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह, खनिज एवं श्रम मंत्री श्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, पिछड़ा वर्ग एवं अल्प संख्यक कल्याण राज्यमंत्री श्री रामखेलावन पटेल, सांसद गणेश सिंह, पिछड़ा वर्ग के सदस्य एवं विधायक मउगंज श्री प्रदीप पटेल, पूर्व मंत्री एवं विधायक रीवा श्री राजेन्द्र शुक्ला, विधायक रामपुर बघेलान श्री विक्रम सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सुधा सिंह, जन-प्रतिनिधि और बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ठाकुर रणमत सिंह की प्रतिमा पर किया माल्यार्पण

मुख्यमंत्री श्री‍शिवराज सिंह चौहान ने जनदर्शन यात्रा के अंतिम पड़ाव सतना के कोठी में अमर शहीद ठाकुर रणमत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें आदरांजलि दी।

 उमेश तिवारी/राजेश सिंह

Monday, September 13, 2021

बुन्देला विद्रोह ने बोये 1857 क्रांति के बीज

भोपाल : 12 सितंबर 2021 को 11:00

 सागर तथा दमोह क्षेत्र पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था 

अंग्रेज़ों से भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन और विद्रोह के इतिहास को जितना भी खोजा जाए उतना ही कम है। हर खोज में बहुत कुछ नया ही मिलता है। इस आलेख में भी काफी कुछ नया है। पढ़ने पर आपको बहुत सी नई हकीकतें और तथ्य मिलेंगे। देखिए ज़रा एक नज़र। 

कहते हैं कि इतिहास सत्य का अन्वेषण है, लेकिन जब सत्य विजेता-प्रायोजित हो तब हमारे इतिहास के साथ यही समस्या है। इसीलिये जब 7 अप्रैल, 1818 को तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल के सेक्रेटरी टी.एच. मेडोक ने सागर और दमोह क्षेत्र को हड़पने की गरज़ से ब्रिटिश सरकार को भेजे गये अपने पत्र में निम्नांकित निष्कर्ष निकाला तो वे एकदम झूठ बोल रहे थे। उन्होंने लिखा- "इस क्षेत्र के निवासी पूरी तरह शांत हैं और ब्रिटिश सरकार की छत्र- छाया में रखे जाने की संभावना से बेहद खुश हैं।"

यथार्थतः स्थिति एकदम उलट थी क्योंकि इस इलाके के लोग अंदर ही अंदर अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह की रचना रच रहे थे। सन् 1817-18 में अप्पा साहब भोंसले की पराजय के बाद मराठों का पराभव हो चुका था और सागर तथा दमोह क्षेत्र पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था। दस मार्च, 1818 को अंग्रेजों ने समस्त चौधरियों, कानूनगो, जमींदारों और इलाके की रियाया के नाम बाकायदा घोषणा जारी करके बता दिया था कि अब से यहाँ अंग्रेजी राज कायम हो गया है। यही वह इलाका था जिसे अंग्रेजों ने 'सागर और नर्मदा क्षेत्र' घोषित किया था तथा जिसमें जबलपुर, मंडला, सिवनी, बैतूल, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, सागर और दमोह जिले आते थे। इसी क्षेत्र में सन् 1857 की क्रांति के 15 साल पहले सन् 1842 में जो विद्रोह हुआ उसे ही 'बुन्देला विद्रोह' का नाम दिया गया है। यद्यपि इसे बुन्देला विद्रोह कहा गया किन्तु इसमें क्षेत्र के ठाकुरों के अलावा गोंड आदिवासियों, लोधियों, कुर्मियों आदि ने भी सक्रिय भाग लिया।

यह विद्रोह बुनियादी रूप से अंग्रेजों द्वारा लागू की गई उस शोषणकारी भूमि व्यवस्थापन नीति के विरुद्ध था जिसमें लगान की दरें पाँच से पंद्रह गुना तक कर दी गई थीं। ये दरें तो भूमिपतियों पर भी भारी पड़ रही थीं। बड़ी संख्या में छोटे-बड़े किसानों को बेदखल कर दिया गया। जागीरदारों-जमींदारों का अपमान किया गया। अंग्रेजों द्वारा नियुक्त अफ़सरों ने मनमाने अत्याचार किये। परंपरागत पंचायत व्यवस्था ध्वस्त कर दी गई। नई न्यायिक व्यवस्था उन अंग्रेज अफ़सरों के हाथ में थी जो फिलहाल स्थानीय बोली तो क्या हिन्दी-उर्दू से भी अनभिज्ञ थे। विदेशी शासकों ने सदियों से स्थापित धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं को समाप्त कर दिया था। ब्रिटिश शासकों ने यहाँ जिस तरह का प्रशासन स्थापित किया उसकी निरंकुशता पर प्रकाश डालने के लिये स्वयं आर. एम. बर्ड की रिपोर्ट का वह उद्धरण काफी है जो 'बर्ड्स रिपोर्ट ऑन द सागर एंड नर्मदा टेरिटरीज़' से लिया गया है - "प्रत्येक जिले का प्रशासन उसके प्रभारी अधिकारी की मनमर्जी से चलता था। सारा इलाका कमिश्नर के स्व-विवेक पर निर्भर था। जो कभी-कभी सनक और स्वेच्छाचार के सीमान्त छू लेता था।" बाद में इस विद्रोह के कारणों की जाँच करके उस पर रिपोर्ट देने के लिये कर्नल स्लीमेन नियुक्त हुए। उन्होंने साफ कबूल किया- "एक कमज़ोर तथा लोलुप सरकार के कारण अव्यवस्थाएँ फैल गई, सरकार सिर्फ ताकतवर के ही अधिकार का सम्मान कर सकती थी। इसलिये ताकत की अभिव्यक्ति लूटमार में होने लगी, यह उन प्रमुख कारणों में से एक था जिनके कारण सागर-दमोह संभाग में विद्रोह हुआ।" अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत सागर के उत्तर में नारहट के बुन्देला ठाकुरों ने 8 अप्रैल 1842 को ब्रिटिश पुलिस पर हमला कर की। इन लोगों ने समीपस्थ मालथौन, खिमलासा और गढ़ाकोटा पर कब्जा करने के लिए अभियान शुरू किया।

सागर के ब्रिटिश अफसर एम.सी. ओमन्नी ने नारहट के ढोकुल सिंह के अलावा राव विजय बहादुर, मधुकर शाह आदि को सागर बुलवाया। राव विजय बहादुर ओमन्नी से मिले लेकिन कोई हल नहीं निकला। अगले दो दिनों में विद्रोहियों ने नारहट और खिमलासा पर कब्जा कर लिया। नारहट में मजबूत गढ़ी थी और खिमलासा तो पूरी तरह किलेबंद था। यह विद्रोह आसपास के एक दर्जन से भी अधिक स्थानों पर फैल गया। यद्यपि शाहगढ़ के राजा अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों की सहायता की लेकिन विद्रोही भारी पड़ने लगे थे। बुन्देलखंड के अंग्रेज पॉलिटिकल एजेन्ट एस. फ्रेजर ने रिपोर्ट दी "हमारे सवारों और पुलिस की हत्या का निर्विवाद तथ्य यह है कि हमारी सीमाओं पर बुन्देला ठाकुरों के बीच गंभीर असंतोष है, आम जनता इनके साथ है, हमने विद्रोह को प्रारंभ में हलके में लेने की गलती की।" उल्लेखनीय है कि नारहट की लड़ाई में बुन्देले अंग्रेजों पर इतने भारी पड़े थे कि कैप्टेन राल्फ वहीं मारा गया था। नरियावली और खुरई भी विद्रोहियों की लपेट में थे।

अंग्रेजों को विद्रोह की गंभीरता का अहसास बहुत बाद में हुआ। उन्होंने नागपुर से लेफ्टिनेंट कर्नल वाटसन के नेतृत्व में एक फील्ड फोर्स भेजी और बुन्देलखंड लीजियन तथा सीपरी कंटिन्जेन्ट के अलावा भोपाल से भी एक फौंजी टुकड़ी को विद्रोह दबाने हेतु भेजा। दरअसल बीना नदी के तट पर बुन्देला ठाकुरों ने एक बड़ा संघ बना लिया था, लेकिन 'समीपस्थ रियासतों ने अंग्रेजों की मदद की।

जवाहर सिंह, मधुकर सिंह, गणेशजू तथा विक्रमजीत के नेतृत्व में विद्रोहियों ने संगठित होकर जून 1842 के प्रथम सप्ताह में अंग्रेजों से बिनेका तहसील के बर्रा ग्राम में भीषण युद्ध किया। नौ जून को पंचमनगर के पास पुन: कैप्टन मेकिन्टोश के नेतृत्व में अंग्रेजों ने विद्रोहियों को घेरा। अंग्रेजों को ऐसा लगा कि देशी पुलिस इन लोगों के विरूद्ध कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर रही है। अतः 9 जुलाई, 1842 को फ्रेजर ने एक घोषणा करके देशी सैनिकों को बहुत लालच दिये। उसने बिनेका के तहसीलदार रामचंद्र राव को बर्खास्त कर दिया। बारह जुलाई को फ्रेजर शाहगढ़ के राजा बखतबली शाह से मिला और विद्रोह दबाने में उसकी सहायता मांगी। लेफ्टिनेंट गवर्नर के सेक्रेटरी हेमिल्टन ने लिखा कि-'अगर राजा को ब्रिटिश संरक्षण चाहिये तो वह विद्रोह को दबाकर सिद्ध करे कि वह ऐसा संरक्षण पाने योग्य है।'

जुलाई और अगस्त 1842 में भी सागर क्षेत्र विद्रोहियों की चपेट में रहा। यद्यपि कैप्टेन ओ. ब्रियेन ने विद्रोहियों के खिलाफ अनेक अभियान किये लेकिन अंग्रेजों का विरोध बराबर जारी रहा। अगस्त 1842 में बहरोल के पास विद्रोहियों से मुठभेड़ में ले. हर्बर्ट बुरी तरह घायल हो गया। जिस गोली से वह घायल हुआ था वह बहरोल के लोधी प्रमुख ठा. मलखान सिंह की हवेली से आई थी।

सितंबर 1842 तक जबलपुर भी विद्रोह की चपेट में आ गया। यहाँ हीरापुर के राजा हिरदेशाह विद्रोहियों के नायक थे। उनके पास लगभग 15 हजार सशस्त्र सैनिक थे और बारह हजार रुपये की लगान माफी थी। उन्होंने नर्मदा और हिरण नदियों में नावों पर कब्जा कर लिया तथा हीरापुर से अंग्रेजों का सम्पर्क काट दिया। हीरापुर नगर नर्मदा और हिरण के संगम पर था। राजा के पास तोपे भी थी। आसपास के अनेक ठाकुर राजा से मिल गये थे। जन. थाम्ब के मातहत अनेक फौजी टुकड़ियों ने हिरदेशाह के खिलाफ़ मुहिम चलाई, लेकिन वे उनके हाथ नहीं आये। कंप्टेन क्लेमेन्ट ब्राउन ने लिखा है कि 'अस्थायी रूप से ही सही लेकिन राजा ने नर्मदा पर स्थित नरसिंहपुर, सागर और जबलपुर के बड़े भाग पर हमारी सत्ता उखाड़ फेंकी थी।" नरसिंहपुर में खजाने की रक्षा करने में के. मेक्लाड को पसीने छूट गये थे। हीरापुर के पास सांकल में दशहरा उत्सव के दौरान अंग्रेजों को खूब छकाया। ऐसा लगता था कि विद्रोही बरमान घाट की नावों पर भी कब्जा करने वाले हैं।

होशंगाबाद जिले की नर्मदा घाटी में लोधी प्रमुखों ने भीषण विद्रोह कर दिया। इस क्षेत्र के प्रमुख नेताओं में मदनपुर के देहलन सिंह गोंड, धिलवार के नटवर सिंह गोंड, घुघरी के नटवर सिंह लोधी, नदिया के अजीत सिंह लोधी, सुआवला के रणजोर सिंह बुन्देला और सावंत सिंह एवं देवरी के ठाकुर शिवराज सिंह उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तेंदूखेड़ा पर कब्जा कर लिया। होशंगाबाद जिले के सोहागपुर सब-डिवीजन की रक्षा करना अंग्रेजों के लिये असंभव था।

जब विद्रोह बहुत फैल गया तो अंग्रेजों ने कई सैनिक टुकड़ियों को एकत्रित करके विद्रोह को दबाने की कोशिश की। नागपुर फोर्स के कमांडर ले.क. वाटसन ने 28 अक्टूबर, 1842 को हीरापुर पहुँचकर राजा हिरदेशाह और उनके साथियों को किला छोड़ने पर मजबूर कर दिया। फ्रेजर ने हिरदेशाह की गिरफ्तारी के लिये दो हजार रुपये के इनाम की घोषणा कर दी। तीस अक्टूबर को हथियारबंद गोंडों ने अंग्रेजों को सोनखेड़ा ग्राम में खूब छकाया। पाँच नवंबर, 1842 को गोंड सरदार देहलन सिंह और नटवर सिंह ने होशंगाबाद के थिलवार जंगल पर कब्जा कर लिया और असिस्टेंट कमिश्नर हग फ्रेंजर को घायल कर दिया। उस क्षेत्र में दो फ्रेजर कार्यरत थे- एक था एच. फ्रेजर और दूसरा था एस. फ्रेजर। यद्यपि घायल फ्रेंजर को अंग्रेज निकाल ले गये किंतु 10 नवंबर, 1842 को उसकी मृत्यु हो गई।

राजा हिरदेशाह बुन्देलखंड की कई रियासतों में गये और उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध गोलबंद करने की कोशिशें की। नवंबर 1842 के अंत तक अंग्रेजों ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर जिलों में आंशिक रूप से विद्रोह को दबा दिया था। विद्रोही सरदारों में फूट डाली गई तथा एक का इलाका जब्त करके दूसरे को दे दिया जिसने अंग्रेजों की सहायता की थी। विद्रोही वनों में छिपकर छापामार युद्ध करते रहे। अंग्रेजों ने नृशंस दमन की नीति अपनाई। भोपाल, ग्वालियर और रीवा रियासतों ने अंग्रजों की सहायता की। इंदौर स्थित अंग्रेज रेजीडेन्ट सर सी.एम. वेडे तथा भोपाल स्थित पॉलिटिकल एजेन्ट कैप्टेन ट्रेवलिन ने आपसी सहयोग से विद्रोहियों पर दबिश बनाये रखी। मेजर जनरल टाम्बस तथा मेजर स्लीमेन को विद्रोहियों, उनके सहायकों आदि की शक्ति तथा पते-ठिकानों की सूची बनाकर दमन करने को कहा गया। स्लीमेन ने सर्वप्रथम हीरापुर के हिरदेशाह पर ध्यान केन्द्रित किया। सत्रह नवंबर, 1842 को अंग्रेजों ने एक घोषणा जारी करके विद्रोहियों से हथियार डालकर आत्म-समर्पण करने को कहा। चौबीस नवंबर को एक और घोषणा करके विद्रोहियों को जिंदा-मुर्दा पकड़वाने के लिये इनाम घोषित किये गये। ये इनाम 200 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक के थे। 19 दिसंबर, 1842 को एक और घोषणा जारी की गई जिसमें हीरापुर के राजा हिरदेशाह, चंद्रपुर के दीवान जवाहर सिंह तथा जैतपुर के अपदस्थ राजा परीछत सिंह की गिरफ्तारी पर दस-दस हजार की रकम घोषित कर दी गई।

इस कार्यवाही का परिणाम अंग्रेजों के हित में रहा। 22 दिसंबर, 1842 को, उक्त घोषणा के मात्र तीन दिन बाद शाहगढ़ के बखतबली शाह ने हीरापुर के राजा हिरदेशाह को गिरफ्तार करवा दिया जब वे अपने दल के साथ जेतपुर से सागर रहे थे। इन बंदियों को दमोह के रास्ते बनारस के पास चुनार भेजा गया जहाँ इनकी जिम्मेदारी चुनार जेल के निर्दयी कमांडन्ट कर्नल चार्ल्स पुले को सौंपी गई। मेजर स्लीमेन ने आदेश दिया कि जब हिरदेशाह और उनके साथियों को दमोह से निकाला जाए तो उसका ऐसा खासा प्रदर्शन हो जिसे सारे दमोहवासी देखे और किसी के मन में यह शंका न रहे कि हिरदेशाह की गिरफ्तारी हुई है या नहीं। अब अंग्रेजों ने विद्रोहियों में फूट डालने की एक और चाल चली। गवर्नर जनरल लार्ड एलेनब्रो चुनार जेल जाकर हिरदेशाह से मिला और उसे ऐसी शर्तों पर माफ करके राज लौटाया ताकि एक तो वह आजीवन अंग्रेजों का अधीनस्थ रहे और दूसरे कोई भी विद्रोही अब उसका विश्वास न करे। अंग्रेजों ने आत्म-समर्पण करने वाले अधिकांश विद्रोहियों को सब तरह से असहाय और निर्बल बनाकर माफी दे दी। लेकिन बुन्देला विद्रोह शुरू करने वाले नारहट के मधुकर शाह को सार्वजनिक रूप से सागर जेल में फाँसी दे दी। जेल के पीछे ही उनका दाह संस्कार कर दिया गया। वहाँ एक चबूतरे का निर्माण किया गया है। गोपालगंज के लोग आज भी स्वाधीनता संग्राम के इस शहीद के प्रति निरंतर श्रद्धा-सम्मान व्यक्त करते हैं। मधुकर शाह के साथ उन्हीं की बहन ने विश्वासघात करके उन्हें सोते समय गिरफ्तार करवा दिया था। मधुकर शाह के उन्नीस वर्षीय भाई गणेशजू को देश निकाले का दंड दिया गया।

अगस्त 1845 तक बुन्देला विद्रोह समाप्त हो गया। यद्यपि दमन और माफी की नीति से अंग्रेजों ने इसे फिलहाल खत्म कर दिया, लेकिन इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असंतोष की जो चिंगारी दहकाई वह ज्वाला बनकर मात्र 15 साल बाद सन् 1857 के सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम के रूप में भड़की। याद रहे कि सन् 1842 का बुन्देला विद्रोह स्वतंत्रता महायज्ञ में मध्यप्रदेश की प्रथम आहुति था। स्थिति का व्यंग्य देखिये कि जिन राजा बखतबली और ठाकुर मर्दन सिंह ने 1842 में अंग्रेजों का साथ दिया उन्हीं ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। इन दोनों को जनवरी 1858 में आजन्म कारावास की सजा देकर मथुरा जेल में रखा गया। (जनसम्पर्क विभाग  मध्यप्रदेश  सरकार से साभार)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।)

Saturday, September 11, 2021

राष्ट्रीय वन शहीद दिवस

Saturday: 11th September 2021 at 17:45 IST

वन्य-प्राणियों की रक्षा में शहीद हुए 3 वन कर्मियों के परिजन सम्मानित

सम्मान समारोह में एक-एक लाख रूपये के चेक और प्रशस्ति-पत्र किये गये भेंट

भोपाल: शनिवार: 11 सितम्बर 2021 (मध्यप्रदेश स्क्रीन ब्यूरो):: 


कई बार वन और वन-प्राणियों की रक्षा करते हुए होने वाले हिंसक टकराव केवल फ़िल्मी कहानियां नहीं होतीं। वे सच में घटित होते हैं। वन की ज़िंदगी शांत होने के बावजूद उन लोगों की वजह से अशांत होती रहती है जिनकी बुरी नज़र वन सम्पदा पर होती है। इन हिंसक लोगों का सामना करते करते कई बार वन कर्मी शहीद भी हो जाते हैं। कभी कभी वन में भयंकर आग लग जाती है तो उस समय भी उस आग को नियंत्रित करते करते अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इसी तरह के शहीदों को नमन किया है मध्यप्रदेश सरकार ने इन शहीदों के परिजनोंसम्मानित भी किया और वित्तीय सहायता भी दी। 

प्रधान मुख्य वन्य संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री रमेश कुमार गुप्ता ने कहा है कि वन विभाग के वनकर्मी प्रदेश के जंगलों की सुरक्षा और वन्य-प्राणियों के संरक्षण कार्य में अपने प्राणों की आहूति देकर कर्त्तव्य-परायणता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते है। ऐसे शहीद वनकर्मियों के बलिदान पर विभाग फक्र करता है। श्री गुप्ता राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के मौके पर चार इमली स्थित वन विश्राम गृह परिसर में कर्त्तव्य के दौरान शहीद वनकर्मियों के परिजन को सम्मानित कर रहे थे।  

कार्यक्रम में तीन शहीद वनकर्मियों के परिजन को एक-एक लाख रूपये का चेक और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) श्री आलोक कुमार सहित वन विभाग के अधिकारी, कर्मचारी मौजूद थे।

शहीद वनकर्मी

शहीद मदन लाल वर्मा: वन मण्डल देवास में वन रक्षक के पद पर कार्यरत श्री मदनलाल वर्मा 4 फरवरी 2021 को वन क्षेत्र की पुंजापुरा परिक्षेत्र की बीट रतनपुर में वन्य-प्राणी शिकारियों से हुई मुठ-भेड़ के दौरान गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुए थे। वन मण्डलाधिकारी देवास ने वनकर्मियों के शहीद दिवस के दिन आज ही रतनपुर बीट का नाम शहीद मदनलाल वर्मा के नाम रखे जाने के आदेश जारी किए हैं।

शहीद राज परीक्षित सतपुड़ा टाइगर रिजर्व होशंगाबाद में वन रक्षक के पद पर कार्यरत श्री राज परीक्षित भट्ट 5 मई 2021 को वन क्षेत्र में हुई अग्नि दुर्घटना को नियंत्रित करने के प्रयासों के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे।

शहीद सूर्यप्रकाश ऐडे: वन मण्डल बालाघाट में वन रक्षक के पद पर कार्यरत रहे श्री सूर्यप्रकाश ऐडे वन क्षेत्र में 12 अप्रैल 2021 को हुई अग्नि दुर्घटना को नियंत्रित करने के प्रयास में वीरगति को प्राप्त हुए थे।