Tuesday, December 3, 2013

INDIA: मध्यप्रदेश के सतना जिले में मातृत्व और बाल स्वास्थ की स्थिति

Tue, Dec 3, 2013 at 9:56 AM
An Article by the Asian Human Rights Commission                              --आनंदी लाल
मध्यप्रदेश के सतना जिले का मझगवां ब्लाक उ.प्र. की सीमा से लगा किनारे का ब्लाक है। भौगोलिक रुप से यहां की स्थिति पहाड़ों और जंगलो वाली हैअधिकतर खेती सिर्फ प्रकृति पर आधारित हैजिसमें यदि मौसम अनुकूल रहा तो वर्ष मे गेहूचनाबाजराधानअरहर आदि की फसलें एक बार होती है।
जनसंख्या की दृष्टि से ब्लाक में दलित और आदिवासी समुदाय की जनसंख्या सर्वाधिक है। आदिवासी समुदाय में यहां कोलमवासीगोंडखैरवार हैजिसमें कोल,मवासी तथा खैरवार आदिवासी समुदाय की परिस्थितियां यहां बेहद चिन्ताजनक है इस समुदाय के सामने वर्तमान में अपना जीवन यापन और भरण-पौषण का विकट संकट विद्यमान है।
96 ग्राम पंचायतों वाले इस ब्लाक में लगभग 1000 छोटे-बड़े राजस्व व गैर राजस्व गांव है। इस ब्लाक में आदिवासी बाहुल्य अधिकांश गांव पहाड़ों के किनारेजंगलों के बीच बसे हैं। इन गावों में पहुँच मार्गपेयजलशिक्षास्वास्थ की मूलभूत सेवाओं का व्यापक अभाव है। वर्षो से सरकार द्वारा विकास व सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाएं यहां कोलमवासीखैरवार के नाम पर बनती व चलती आईं हैं। किंतु अभी तक यथोचित लाभ उन तक नहीं पहुँचा हैं। कारण कि शासन-प्रशासन के साथ स्थानीय दबंगों की मिली भगत का जाल बेहद मजबूत और घना हैसामंतशाही का रौब यहां आज भी आसानी से दिखाई देता है। शोषणबेगारी और दासता के जिंदा उदाहरण लगभग हर गांव में हैं।
जंगलों का कम होना,लघु वनोपज 
Courtesy Photo
का निरंतर घटना इसके साथ ही जंगलों पर सख्त होता सरकारी नियंत्रण भी यहां की आदिवासी समुदाय की दुर्दशा का बड़ा कारण है। आज भी इस क्षेत्र के हजारों आदिवासी परिवार जंगल से जलाऊ के गट्ठे रोजाना सर पर ले जाकर नजदीकी कस्बों में बेंचकर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में इनके नौनिहालों का जीवन हर पल कुपोषण और भुखमरी की दोधारी तलवार पर रहता है।
बच्चों में कुपोषण की स्थिति
मवासीखैरवारकोल आदिवासी समुदय के 6 वर्ष तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति खतरनाक है। कोल समुदाय के बच्चों में कुपोषण 40 से 50 प्रतिशत और मवासी व खैरवार समुदाय के बच्चों में 50 से 70 प्रतिशत तक है।
विगत वर्षों में क्षेत्र के 30 गांवों में हमारे संगठन के साथियों ने लगभग 300 कुपोषित बच्चों की मृत्यु की घटनाओं से जुड़े तथ्यों को संकलित किया था। यदि व्यापकता से ब्लॉक के अन्य गांवों की जानकारी एकत्र की जाए तो शायद यह संख्या प्रतिवर्ष हजारों बच्चों में जाएगी।
चित्रकूट (मझगवां) परियोजना के अनुसार कुपोषण की स्थिति
चित्रकूट (मझगवां) परियोजना कार्यालय के अनुसार 153 कुल आंगनवाड़ी केन्द्र और 33 मिनी केन्द्रों में माह जुलाई 2013 में कुपोषण की स्थिति निम्नवत रही। 0 से 5आयु वर्ग के कुल 16218 बच्चों में से 4186 बच्चे कम वजन के तथा 615 बच्चे अति कम वजन के हैं।
उपरोक्त आंकड़ों से ऐसा लग रहा है कि क्षेत्र में अति कम वजन (गंभीर कुपोषित) बच्चों की संख्या कम है। अर्थात कुपोषण का ग्राफ घटा है। जबकियह स्थिति सही नहीं है।
एक वर्ष से लगातार ट्रेकिंग किए गए बच्चों की स्थिति
हमारे द्वारा क्षेत्र के 09 गांवों बरहा भवानगहिरा गढ़ी घाटपिण्डरा कोलानरामनगर खोखलाकानपुरपड़ोपुतरिहाझरी कॉलोनीकिरहाई पोखरीआदि के 358बच्चों की माह जनवरी से अगस्त 2013 तक प्रतिमाह ट्रेकिंग की गई जिसमें 42 गंभीर कुपोषित बच्चों की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आया।
कुपोषण के मुद्दे पर स्थानीय सामाजिक नजरिया
स्थानीय भाषा में लोग अति कुपोषित बच्चों को सूखा रोग ग्रसित बच्चा कहते हैं। परिजन कई मौकों पर ऐसे बच्चों का इलाज दवाओं या झाड़ फूंक से करते हैं। कई बार दोनों तरीके अपनाते हैं। प्रभावित परिवार के लोग ऐसे बच्चों की स्थिति या मृत्यु के बारे में भाग्य और विधाता की नियति मानते हैं। स्वास्थ्य विभाग और एकीकृत बाल विकास परियोजना के लोग कहते हैं कि ''माता पिता की लापरवाही और अधिक संतानें पैदा करना इसका मुख्य कारण है।'' उच्च वर्ग के स्थानीय लोग इसे कर्मों का फल व भगवान के लेखा-जोखा से जोड़ते हैं।
कोलमवासी समुदाय की स्थितिः
मझगवां ब्लॉक के 20 आदिवासी गांवों के एक गैर सरकारी अध्ययन के मुताबिक यहां 70 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं। शेष 30 प्रतिशत परिवार भी अधिकतम 5 एकड़ तक भूमि के स्वामी हैं। आदिवासियों की कुछ जमीनों पर यहां के भूमि माफिया या दबंग वर्ग के लोगों का अवैध कब्जा है। कुछ धोखाधड़ी व कर्ज आदि के कारण भी यह स्थिति बनी है।
अधियाबटाई की खेतीरोजनदारी की मजदूरीफसल कटाई के समय की मजदूरीमहुआजड़ी-बूटीतेंदू पत्ता आदि लघु वन उपजों का संकलन और पूरे साल जलाऊ लकड़ी के गटठों को बेचकर आने वाली रोजमर्रा की आय ही इस समुदाय के पालन पोषण का मुख्य जरिया है।
शादी व्याह और बीमारी आदि पारिवारिक वजहों से लिया गया स्थानीय साहूकारों व दबंगों के कर्ज में भी ब्याज के रूप में इनकी कमाई का बड़ा हिस्सा जाता है। कई नौजवान महिला-पुरूष विगत 5-6 वर्ष से पलायन पर जाने को भी मजबूर हुए हैं।
शिक्षा का प्रतिशत 30 वर्ष से ऊपर के लोगों के कोल समुदाय में लगभग 45 व मवासी में लगभग 30 है। हाई स्कूल से ऊपर तो यह अनुपात मात्र 10 प्रतिशत ही है। अभी भी लड़कियों की शादी आम तौर पर 15-16 वर्ष की उम्र में कर दी जाती है। शादी के बाद ज्यादातर नव विवहित दम्पत्ति अपना अलग परिवार बसाकर अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं। ज्यादातर लड़कियां 10 वर्ष की उम्र होते तक माता पिता के साथ घरखेत और जंगल के कामों में बराबर सहयोग करने लगती हैं। घर का पानी भरनाखाना पकानासाफ-सफाई व छोटे बहन भाइयों की देखभाल का जिम्मा भी इन पर आने लगता है। प्राथमिक स्वास्थ्य और टीकाकरण की सेवाएं गर्भकाल से एक वर्ष तक बच्चों को मिलने का प्रतिशत यहां पर 27 है। यहां लगभग हर आदिवासी गांव में पेयजल की समस्या है।
96 ग्राम पंचायतों के बीच ब्लॉक मुख्यालय पर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ही कुछ हद तक लोगों की स्वास्थ्य सुविधा का विकल्प है। शेष अन्य स्वास्थ्य केन्द्र सरकारी अनदेखी व विभागीय लापरवाही का शिकार हैं। ऐसे में दर्जनों झोलाछाप डाक्टरअवैध क्लीनिक एवं गांव-गांव में घूमने वाले अनपढ़ डाक्टरों से अनजाने में स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर लोग अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। गरीबी के कारण भी लोग जिला मुख्यालय या अच्छे डाक्टरों तक नहीं पहुंच पाते हैं।
आनंदी लाल "आदिवासी अधिकार मंचमझगवां" के साथ मिलकर काम कर रहे हैं
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About the AuthorMr. Anandi Lal is a grassroot activist working with 'Adivasi Adhikar Manch', Majhgawan.
About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Monday, March 11, 2013

मध्य प्रदेश सरकार की महिला नीति:

बाढ़ की संभावनाओं पर घर बनाने का जतन         --प्रशान्त कुमार दूबे
An Article by the Asian Human Rights Commission
बाढ़ की संभावनायें सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं।
मशहूर शायर दुष्यंत कुमार का यह शेअर प्रदेश में घनघोर जल्दबाजी में की जा रही एक कसरत पर मौजूं है | देश में पहली बार महिला नीति बनाने का तमगा हासिल करने वाले और विगत एक साल से बगैर महिला नीति के सांसे भरते मध्यप्रदेश में नई महिला नीति को बनाने की कवायद जोर-शोर से चल रही है। महिला एवं बाल विकास विभाग और प्रशासन अकादमी की महिला शाखा इस पर कसरत कर रही है। पर यह सब बहुत ही जल्दबाजी में हो रहा है। क्यूंकि खबर है कि प्रदेश के घोषणावीर मुख्यमंत्री इस नीति को अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर लागू कर इसे भुनाना चाहते हैं। यह जनसंपर्क विभाग का एक महत्वपूर्ण काम है कि चुनावी साल में दिवसों की महत्ता को जम कर भुनायें और कमोबेश वही हो रहा है। बहरहाल जल्दबाजी में बन रही इस महिला नीति के काफी उथले होने के आसार हैं। यह नीति यदि 8 मार्च को लागू नहीं की गई तो भी मार्च में यह लागू हो ही जायेगी |
प्रदेश सरकार के साथ एक जुमला साथ चलता है कि गलती करना और उसे दोहराते रहना | यह महिला नीति के साथ भी हो रहा है | ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश की महिला नीति 2008-12 तैयार की गई थी जिसका लक्ष्य विकास की मुख्य धारा में महिला की गरिमापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कर उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित नीतियों का परिणाममूलक क्रियान्वयन करना रखा गया। इस महिला नीति में महिलाओं के घटते लिंग अनुपात,बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम, महिलाओं के प्रति हिंसा, महिलाओं व किशोरी बालिकाओं की शिक्षा व गुणात्मक स्वास्थ्य सेवायें, प्रत्येक स्तर पर निर्णय प्रक्रिया एवं व्यवस्था में भागीदारी, जेण्डर पर आधारित बजट व्यवस्था तथा नीतिगत प्रावधानों की मानिटरिंग, मूल्याकंन और प्रतिवेदन को शामिल किया गया था । पर एसा कुछ हुआ नहीं और नयी नीति की तैयारी चालू हो गयी है |
आइये जरा पिछली नीति के कुछेक वायदों और आज के हालात पर गौर करें | अव्वल तो यही कि बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में मध्यप्रदेश पिछले 10 वर्षों से पहले स्थान पर है | इस कलंक को धोने के लिए पिछली नीति में प्रदेश के प्रत्येक पुलिस थानों में महिला पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करना था, जो आज तक नहीं हुई। ट्रेफिकिंग को रोकने के लिये निगरानी व्यवस्था बनाई जानी थी जो बनी नहीं, बल्कि ट्रेफिकिंग पिछले पांच सालों में और बढ़ी है। केवल पिछले सात सालों में ही 8108 बालिकाओं की गुमशुदगी दर्ज है | हालाँकि अभी 2 माह पहले जरूर एक हेल्पलाइन बनी है जो स्वागत योग्य कदम है लेकिन वह भी दिल्ली प्रकरण से उपजे चौतरफा दवाब का नतीजा है |
पिछली नीति में महिलाओं के भू अधिकारों के संदर्भ में समानाधिकार दिये जाने पर जोर दिया गया था, लेकिन इसी राज्य सरकार ने महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री करने पर 1 प्रतिशत शुल्क की छूट के प्रावधान तक को खत्म कर दिया गया। इसके लिए कानून भी बनाया जाना था, पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी। एनएफएचएस-3 के अनुसार 56 फीसदी खून की कमी वाली महिलाओं के प्रदेश में किशोरी स्वास्थ्य को बेहतर करने और पोषण देने की बात कही गई थी लेकिन अभी भी यह सरकार हर गांव में केवल दो ही किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार उपलब्ध करवा रही है, ना कि सभी बालिकाओं को । सबला योजना(केंद्र प्रवर्तित) भी प्रदेश के 15 जिलों तक सीमित है बाकी 35 जिलों के लिए कुछ नहीं।
नीति यह भी कहती थी कि गर्भकाल में महिलाओं से मेहनत करवाने से ठेकेदार पर कार्यवाही होगी। परन्तु आज तक एक भी ठेकेदार के खिलाफ प्रदेश में कोई कोई भी कार्यवाही नहीं हुई बल्कि गर्भवती महिलायें तो मनरेगा जैसे सरकारी कार्यक्रमों में ही काम करती पाई जा रही हैं। इस पूरे मसले पर महत्वपूर्ण था कि हर साल महिलाओं की स्थिति पर नवीन आंकड़ों और राज्य स्तर पर उठाये जा रहे कदमों के संबंध में एक स्थिति पत्र बनाने और उसे सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग की थी, लेकिन अब तक यह पत्र एक बार भी नहीं निकला है। क्रियान्वयन की निगरानी इसी विभाग के पास थी लेकिन निगरानी हुई होती तो शायद हमें यह मर्सिया गाने की जरूरत थी ही नहीं।
हां कुछ हुआ है तो वह है पंचायती राज्य एवं शहरी निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण। यह काबिल-ए-गौर है और इसलिये सरकार बधाई की पात्र है लेकिन यह भी देखना सरकार का ही काम है कि उन जनप्रतिनिधियों की क्षमतावृद्धि कैसे की जाये ताकि वे बेहतर काम कर सकें। इसी प्रकार बालिका भ्रूण हत्या की रोकथाम और बालिका शिक्षा पर तो ध्यान दिया जा रहा है पर बालिकायें स्कूल क्यों छोड़ती हैं उस पर ज्यादा कसरत नहीं हुई है।
सरकार ने यह भी कहा था कि गरीबी परिवारों की बालिकाओं को विवाह में विशेष सहायता दी जायेगी। सरकार ने इसके लिये प्रावधान तो बढ़-चढ़कर किये पर कन्या को दान की वस्तु समझते हुये ‘कन्यादान’ योजना लागू कर दी। ‘कन्यादान’ शब्द यदि राज्य उपयोग करता है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं होगी। समझ से परे यह भी है कि एक राज्य महिला नीति बनाते समय महिलाओं को समता, समानता, गरिमा व क्षमताओं के साथ महिला को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की बात करता है लेकिन दूसरी ओर उसी महिला की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हुये कन्यादान योजना लागू करता है। खबर यह भी है कि नई महिला नीति का प्रारुप भी इस पर मौन है और नीति नियंता भी।
तो सवाल यह है कि यदि पिछली नीति के क्रियान्वयन का यह स्तर है तो क्या यह माना जाये कि यह नीतियां महज रस्मअदायगी ही होती हैं ताकि यदि विकास के तराजू पर तौला जाये तो राज्य कह सके कि हमने महिला नीति बनाई है। पिछली महिला नीति 2008-2012 में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किये थे पर छः साल बाद भी ढांक के तीन पात, तो फिर ऐसी नीति का क्या औचित्य .....? क्या यह नीतियां दिखावे या वेबसाईट पर शोभा बढ़ाने के काम आती हैं ताकि जब गूगल पर सर्च किया जाये तो टप से उछल कर महिला नीति, मध्यप्रदेश सामने आ जाये और महिलाओं के हक में मध्यप्रदेश का यशगान गाया जा सके। सवाल तो यह भी है कि क्या यह नीतियाँ मुख्यमंत्री और प्रशासन के खम ठोंकने के काम ही आती हैं या संदर्भित समूह के उत्थान की वास्तविक चिंता भी समाहित होती है। जवाब है नहीं। क्यूंकि यदि नीतियों और उनके प्रावधानों को सरकार गंभीर मानती तो फिर पिछले एक साल से प्रदेश में तो नीति ही नहीं है तो सरकार इतनी कछुआ चाल से क्यूँ रेंगती रही ? अब जबकि दिल्ली प्रकरण से देश भर में बने माहौल से प्रदेश सरकार की लुटिया भी ना डूबने लगे तो सरकार आनन-फानन में यह नीति बनाने पर विचार कर रही है |
प्रदेश के तमाम महिला संगठनों ने इन सभी मुद्दों पर अपनी तल्ख़ टिप्पणी करते हुये यह मांग की है कि ना केवल बेहतर नीति बनाई जाये बल्कि पुरानी महिला नीति के प्रावधानों और उनके हश्र को ध्यान में रखते हुये सरकार उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का खाका भी खींचा जाए। प्रदेश के करीब 20 संगठनों ने महिला नीति को लेकर व्यापक सुझाव भी राज्य सरकार को सौंपे हैं | नागरिक अधिकार मंच की उपासना बेहार कहती हैं कि सरकार को इतनी जल्दबाजी की बजाय प्रस्तावित महिला नीति को जनमंचों पर लाना चाहिये, ताकि उस पर गंभीर चर्चायें हों और उसके बाद ही सरकार आगे बढ़े । इससे हटकर एक बड़ा सवाल कि सरकार जो नीति में लिखेगी, वो अपनाने के लिये कितना तैयार है, यह भी वह बताये । देखना यह भी होगा कि पिछली बार के नीति दस्तावेज की प्रथम पंक्ति की तरह सरकार इस बार भी महिला को प्रकृति की सबसे सुंदर कृति बतायेगी या महिला को सुन्दर और कुरुप की छवि से बाहर निकलकर एक स्वतंत्र व्यक्तित्व मानेगी और उसे आगे लाने के प्रयास भी करगी।
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About the Author: Mr. Prashant Kumar Dubey is a Rights Activist working with Vikas Samvad, AHRC's partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. He can be contacted at prashantd1977@gmail.com
About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

Friday, February 8, 2013

अशोक नगर के गांवों में 129.87 लाख रुपए की सहायता

08-फरवरी-2013 12:21 IST
मध्यप्रदेश ग्रामीण विद्युतिकरण निगम लिमिटेड ने लाभ से वंचित लोगों को प्राथमिक चिकित्सकीय सेवाएं मुहैया कराने के लिए कॉरपोरेट समाजिक दायित्व के तहत सहायता प्रदान की ग्रामीण विद्युतिकरण निगम लिमिटेड (आरईसी) ने अशोक नगर (मध्यप्रदेश) के गांवों में लाभ से वंचित लोगों को तीन वर्षों की अवधि के लिए प्राथमिक चिकित्सकीय सेवाएं मुहैया कराने के लिए कॉरपोरेट समाजिक दायित्व के तहत कल बिजली राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपस्थिति में स्माइल फाउंडेशन के साथ सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर आरईसी के मुख्य प्रबंध अधिकारी श्री राजीव शर्मा तथा बिजली मंत्रालय और आरईसी के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। 

कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व पहल के तहत मोबाइल स्वास्थ्य वैन लक्षित गांवों में रहने वाले लोगों को प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवाएं मुहाएं कराएगी। इसमें सुरक्षित मातृत्व और सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं के साथ समीपवर्ती सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों, निजी क्लिनिकों, नर्सिंग होम और स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ संपर्क भी शामिल है। 

इस अवसर पर मंत्री महोदय ने गांव के गरीबों के लाभ से संबंधित इस महत्वपूर्ण पहल के लिए आरईसी और स्माइल फाउंडेशन को शुभकामनाएं दी। उन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता की भी कामना की। 

ग्रामीण विद्युतिकरण निगम लिमिटेड (आरईसी) एक सरकारी उद्यम है जो अपने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व अभियान के तहत लाभ से वंचित लोगों को सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

स्माइल फाउंडेशन राष्ट्र स्तरीय विकासात्मक संगठन है जो वर्तमान में 200,000 से भी अधिक बच्चों और युवाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आजीविका, महिला सशक्तिकरण आदि से संबंधित 185 कल्याण योजनाओं के ज़रिए भारत के 25 राज्यों में सीधे तौर पर मदद पहुंचाता है। (PIB)


वि.कासोटिया/विजयलक्ष्मी/सुमन - 494

मध्‍य प्रदेश के शिवपुरी में कौशल विकास केंद्र

08-फरवरी-2013 12:45 IST
आरईसी ने सीएसआर के तहत 192.30 लाख रूपये की सहायता दी 
सरकारी उद्यम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (आरईसी) कॉरपोरेट सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व (सीएसआर) पहल के तहत अजा/अजजा/अपिव/महिला तथा समाज के कमजोर वर्ग के बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ उन्‍हें रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्‍य से वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। 

मध्‍य प्रदेश के शिवपुरी में प्रशिक्षण केंद्र पर कौशल विकास प्रशिक्षण उपलब्‍ध कराने के लिए आरईसी ने निर्माण उद्योग विकास परिषद (सीआईडीसी) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किये है। यह हस्‍ताक्षर केंद्रीय विद्युत राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री ज्‍योतिरादित्‍य एम.सिंधिया, आरईसी के सीएमडी श्री राजीव शर्मा, सीआईडीसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर के सदस्‍य प्रो. निरंजन स्‍वरूप तथा विद्युत मंत्रालय के अन्‍य वरिष्‍ठ अधिकारियों की उपस्थिति में किये गए। 

मध्‍य प्रदेश के शिवपुरी स्थित यह कौशल विकास केंद्र राज्य में इस तरह का पहला केंद्र है। यह मध्‍य प्रदेश के विभिन्‍न जिलों के रहने वाले लगभग पांच सौ युवाओं को कौशल विकास प्रदान करने में मदद करेगा ताकि वे निर्माण उद्योग से संबंधित विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रशिक्षण के जरिए रोजगार प्राप्‍त कर सकें। अब तक लगभग एक हजार बेरोजगार युवा आरईसी के सीएसआर पहल के तहत लाभान्वित हो चुके हैं जिससे उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। 

सीआईडीसी की स्‍थापना योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा की गई है जिसका उद्देश्‍य निर्माण उद्योग के कामकाज की दिशा में सुधार लाने के लिए कार्य करना है। 

इस अवसर पर मंत्री महोदय ने आरईसी तथा सीआईडीसी को ग्रामीण गरीबों के लाभ के लिए किये गए इस महत्‍वपूर्ण कार्य के लिए बधाई दी। (PIB)
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वि.कासोटिया/आनंद/सुमन-496

Wednesday, February 6, 2013

केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी योजना धन

06-फरवरी-2013 16:05 IST
मध्य प्रदेश बना योजना धन का पूरा उपयोग करने वाला पहला राज्य
केन्द्रीय पर्यटन मंत्री श्री चिरंजीवी ने पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी योजना निधि का अपने राज्य के विभिन्न पर्यटक स्थलों में पर्यटन ढांचे के विकास में पूर्ण उपयोग करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार को बधाई दी है। मध्य प्रदेश इस योजना निधि का पूरा उपयोग करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। मध्य प्रदेश में वर्ष 2013-14 के लिए पर्यटन विकास से संबंधित परियोजनाओं के बारे में आयोजित बैठक के बाद उन्होंने राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा परियोजनाओं को समय पर लागू करने और 11वीं पंचवर्षीय योजना (2010-11 तक) के तहत जारी की गई राशि के उपयोग के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की। 

इस प्रकार मध्य प्रदेश, देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जिसने राशि उपयोग और कार्यपूर्ण होने के सभी प्रमाण पत्र जमा कर दिए हैं। उसके पास भारत सरकार की कोई निधि बकाया नहीं है तथा उसने धन के उपयोग के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा जारी सभी निर्देशों का अनुपालन किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने जारी किए गए धन का उपयोग मांडू, विदिशा, शिवपुरी, बुरहानपुर, महेश्वर, दतिया, इंद्रानगर, मंदसौर, हांडिया, बैतुल और चित्रकूट जैसे पर्यटक स्थलों के विकास पर किया है। (PIB)

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वि.कासोटिया/इंद्रपाल/शदीद–458